SOCH 3
हमारे विचार (सोच) ही हमारे व्यक्तित्व और व्यव्हार का निर्माण करते हैं और यही व्यक्तित्व और व्यव्हार समाज में हमारी एक छवि बनाते है जो अच्छी और बुरी दोनों हो सकते है। इंसान जैसी सोच रखता है वह वैसे ही काम करता है अगर हमारी सोच सकारात्मक होगी तो सम्माज में हमें मान-सम्मान मिलता है और इसके विपरीत यदि हमारी सोच नकारात्मक होगी तो लोग बुरा-भला कहेंगे व मान-सम्मान भी जाता रहेगा।
सोच हमारे व्यक्तित्व का आइना होती है। पिछले लेख में आप पहले जान चुके है कि सोच दो प्रकार की होती है एक सकारात्मक और दूसरी नकारात्मक इन्ही दोनों सोच का हमारी ज़िन्दगी पर क्या प्रभाव होता है इसके बारे में जानने का प्रयास करते हैं।
सकारात्मक सोच
हमारी सकारात्मक सोच ही हमें यह विशवास दिलाती है कि हम ज़िन्दगी की हर कठिन परिस्थिति का सामना करते हुए सफलता पा सकते हैं। सफलता पाने के लिए हमें सफल लोगो से प्रेरणा लेनी चाहिए क्योंकि एक अच्छी प्रेरणा सफलता की ओर अग्रसर करने में सहायक सिद्ध होती है। सकारात्मक सोच के कारण ही हम बुरे से बुरे हालत में भी होंसला बनाए रख सकते हैं। जब किसी काम में सफलता नहीं मिलती तो एक सकारात्मक सोच रखते हुए बार-बार उस काम को नए तरीके से करने का प्रयास करने से सफलता मिल ही जाती है। किसी व्यक्ति में सकारात्मक सोच का स्तर कितना ज़्यादा है वो उसे उतना ही महान बना देती है। महात्मा गाँधी, विवेकानंद, कबीरदास, राजा राम मोहन राय जैसे और भी महान लोगों ने ही दुनियाभर के समाज को ज़िन्दगी जीने की एक आदर्शवादी और सही राह दिखाई है।
यदि किसी समाज में सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति अधिक होंगे तो उस समाज में सभी लोगों को ज़िन्दगी जीने के लिए एक सुरक्षित माहौल मिलता है और ऐसे माहौल में अपराध करने वाले मुंह छिपाने को मजबूर हो जाते है। समाज में इज़्ज़त खोने का डर उन्ही लोगों को होता है जिनकी समाज में इज़्ज़त होती है। इज़्ज़त कब मिलती है? जब आपका व्यवहार सब के साथ दोस्ताना होगा। सबके साथ दोस्ती कब होगी? जब आप दूसरों का सम्मान करते हैं और उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं और ऐसा तभी मुमकिन है जब आप में एक सकारात्मक सोच होगी।
नकारात्मक सोच
ज़िन्दगी में अगर कोई मुश्किल काम पड़ जाए और काम करने वाला पहले ही उस काम से हार मान ले तो ऐसी सोच को नकारात्मक सोच कहा जाता है। ज़िन्दगी में मुश्किलों के कारण और सकारात्मक सोच की कमी के अभाव में कई लोग बहुत निराश हो जाते हैं और अपना मानसिक संतुलन तक खो बैठते है और यदि स्थिति और अधिक बिगड़ जाए तो स्वस्थ्य पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
किसी व्यक्ति में नकारत्मकता का स्तर जितना ज़्यादा होगा उस व्यक्ति की ज़िन्दगी का सामाजिक स्तर उतना ही नीचा होगा। अत्यधिक नकारात्मक सोच किसी भी व्यक्ति को एक अपराधी बनाने के लिए काफी होती है। नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति कभी किसी का भला नहीं चाहते। खुद सफल होने के लिए अगर किसी का उन्हें बुरा करना पड़े तो वो ऐसा करने से पीछे नहीं हटते इसलिए समाज में ऐसे लोगों को एक अपराधी की नज़र से देखा जाता है।
नकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्ति के बने बनाए काम भी अक्सर बिगड़ जाते हैं और जब किसी काम में सफलता नहीं मिलती तो उन्हें निराशा महसूस होती है। जिसके कारण न केवल वे मानसिकरुप से परेशान होते हैं बल्कि खुद अपने स्वस्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं।
ज़िन्दगी की परेशानियों का सामना न करके उनसे भागना नकारात्मकता की पहचान है। नकारात्मक सोच वाला व्यक्ति लगातार असफलता की दलदल में धंसता जाता है और वह अपना स्वस्थ्य तो खोता ही है साथ ही साथ आर्थिक रूप से कमज़ोर होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है।
हमारे रोज़गार पर सोच का प्रभाव
हमारी ज़िन्दगी
में सोच का असर व्यक्ति के रोज़गार पर भी पड़ता है और इंसान की पहचान उसके काम (हुनर) से ही होती है। इसे एक उदाहरण से
समझते है- मान लो एक
मिस्त्री कोई काम करता है और वो मिस्त्री ऐसा काम करता है कि उसका किया हुआ
काम ज़्यादा समय नहीं चल पाता है और उसके पीछे उसकी यह सोच हो कि काम ऐसा करो ताकि जल्दी ही वो वस्तु ख़राब हो जाए और जल्दी-जल्दी मेरी कमाई होती रहे तो उसकी यह सोच एक नकारात्मक सोच का उदाहरण है और ऐसी सोच
के कारण उसकी पहचान एक ख़राब मिस्त्री होगी। इसलिए उसे काम भी कम मिलेगा और उसकी तरक्की की सम्भावनाएँ भी काम हो जाएँगी।
दूसरों पर हमारी सोच का प्रभाव
हमारी सोच का दूसरों पर भी पड़ता है। आपने एक कहावत तो सुनी होगी कि ख़रबूज़ा भी ख़रबूज़े को देखकर रंग बदलता है। इसलिए कहा जाता है कि अच्छे लोगों में बैठोगे तो अच्छे बनोगे और बुरी संगत में बैठोगे तो बुरे बनोगे। अक्सर कई व्यक्ति दूसरे की सोच से प्रभावित होकर उसे अपनी ज़िन्दगी में अपना लेते है, चाहे वो अच्छा हो या बुरा इसकी चिंता नहीं करते। जो व्यक्ति अशिक्षित या अनुभवहीन होते है वह किसी की भी बातों में जल्दी आ जाते है और उनकी बातों से प्रभावित होकर खुद भी वही काम करने लगते है बिना ये सोचे की उसका परिणाम क्या होगा क्या होगा। ऐसा हर उम्र के इंसान के साथ होता है। लेकिन बच्चों में ये बहुत ज़्यादा पाया जाता है क्योंकि उनकी उम्र अभी सिखने की ही होती है। बच्चे अपने माता-पिता को जो करते देखते है वो भी वैसा ही करने लगते है। इसलिए माता-पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की उन्हें बच्चों के सामने कौन से काम करने चाहिए और कौन से नहीं।
जब किसी अन्य व्यक्ति से कोई सूचना मिलती है तो उसके बारे में विचार करना चाहिए कि वो सही है या नहीं अगर आप किसी नतीजे पर नहीं पहुँचते पाते हैं तो उसके बारे में दोस्तों व सहयोगियों से विचार-विमर्श करना चाहिए ताकि आप किसी सही फैसले पर पहुंच सकें।
अगर सफल होना है और समाज में अपनी छवि एक आदर्श व्यक्ति के रूप में बनानी है, तो अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक रखना होगा। जबकि नकारात्मक सोच आपको और दूसरों को भी निराशा की ओर ले जाएगी और इस बात का विशेष ध्यान रखे की आपकी दोस्ती सकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों के साथ हो, ताकि आपको अपनी ज़िन्दगी आसान और खुशगवार लगने लगे।
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